Wednesday, 21 March 2018

गुरु नानक देव जी - GURU NANAK DEV JI




गुरु नानक देव जी ने विश्व भर में सांप्रदायिक एकता ,शांति ,सदभाव के ज्ञान को बढ़ावा दिया और सिख समुदाय की नीव राखी | 

















गुरु नानक देव जी का जन्म 

गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 कार्तिक पूर्णमासी में गांव तलवंडी ,शेइखुपुरा डिस्ट्रिक्ट में एक हिन्दू परिवार में हुआ जो की लाहौर पाकिस्तान से 65 किमी पश्चिम में स्थित है यह अब ननकाना साहिब,पाकिस्तान मे है| इनके पिता का नाम कालूराय मेहता और माता का नाम तृप्ता था | गुरु नानक देव जी सिख धर्म में पहले गुरु थे और उन्होंने सिख धर्म की स्थापना की थी | 



गुरु नानक देव जी का बचपन 


बचपन से ही गुरु नानक जी में आध्यात्मिक, विवेक और विचारशील जैसी कई खूबियां मौजूद थीं। उन्होंने सात साल की उम्र में ही हिन्दी और संस्कृत सीख ली थी। 16 साल की उम्र तक आते आते वह अपने आस-पास के राज्य में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे और जानकार बन चुके थे। इस्लाम, ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के शास्त्रों के बारे में भी नानक जी को जानकारी थी।





गुरु नानक साहिब की शिक्षाएं

नानक देव जी की दी हुई शिक्षाएं गुरुग्रंथ साहिब में मौजूद हैं। गुरु नानक साहिब का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति के समीप भगवान का निवास होता है इसलिए हमें धर्म, जाति, लिंग, राज्य के आधार पर एक दूसरे से भेदभाव नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि सेवा-अर्पण, कीर्तन, सत्संग और एक सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सिख धर्म की बुनियादी धारणाएं हैं।



गुरु नानक देव जी के मिशन की कहानी


गुरु नानक जी नें अपने मिशन की शुरुवात मरदाना के साथ मिल के किया। अपने इस सन्देश के साथ साथ उन्होंने कमज़ोर लोगों के मदद के लिए ज़ोरदार प्रचार किया। इसके साथ उन्होंने जाती भेद, मूर्ति पूजा और छद्म धार्मिक विश्वासों के खिलाफ प्रचार किया।

उन्होंने अपने सिद्धांतो और नियमों के प्रचार के लिए अपने घर तक को छोड़ दिया और एक सन्यासी के रूप में रहने लगे। उन्होंने हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्मों के विचारों को सम्मिलित करके एक नए धर्म की स्थापना की जो बाद में सिख धर्म के नाम से जाना गया।

भारत में अपने ज्ञान के प्रसार के लिए कई हिन्दू और मुश्लिम धर्म की जगहों का भ्रमण किया।

एक बार वे गंगा तट पर खड़े थे और उन्होंने देखा की कुछ व्यक्ति पानी के अन्दर खड़े हो कर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर पानी डाल रहें हैं उनके स्वर्ग में पूर्वजों के शांति के लिए। गुरु नानक जी भी पानी और वे भी अपने दोनों हाथों से पानी डालने लगे पर अपने राज्य पूर्व में पंजाब की ओर खड़े हो कर। जब यह देख लोगों नें उनकी गलती के बारे में बताया और पुछा ऐसा क्यों कर रहे थे तो उन्होंने उत्तर दिया – अगर गंगा माता का पानी स्वर्ग में आपके पूर्वजों तक पहुँच सकता है तो पंजाब में मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता क्योंकि पंजाब तो स्वर्ग से पास है।


जब गुरु नानक जी 12 वर्ष के थे उनके पिता ने उन्हें 20 रूपए दिए और अपना एक व्यापर शुरू करने के लिए कहा ताकि वे व्यापर के विषय में कुछ जान सकें। पर गुरु नानक जी नें उस 20 रूपये से गरीब और संत व्यक्तियों के लिए खाना खिलने में खर्च कर दिया। जब उनके पिता नें उनसे पुछा – तुम्हारे व्यापर का क्या हुआ? तो उन्होंने उत्तर दिया – मैंने उन पैसों का सच्चा व्यापर किया।

जिस जगह पर गुरु नानक जी नें उन गरीब और संत व्यक्तियों को भोजन खिलाया था वहां सच्चा सौदा नाम का गुरुद्वारा बनाया गया है।




मक्का-मदीना में गुरु नानक देव जी का चमत्कार

गुरु नानक देव जी ने अपने जीवनकाल में कई जगह की यात्राएं कीं। एक बार नानक देव जी मक्का नगर में पहुंच गए। उनके साथ कुछ मुस्लिम भी थे। जब वह मक्का पहुंचे तो सूरज अस्त हो रहा था। सभी यात्री काफी थक चुके थे। मक्का में मुस्लिमों का प्रसिद्ध पूज्य स्थान काबा है। गुरु जी रात के समय थकान होने पर काबा की तरफ विराज गए।

काबा की तरफ पैर देखकर जिओन ने गुस्से में गुरु जी से कहा कि तू कौन काफिर है जो खुदा के घर की तरफ पैर करके सोया हुआ है? इस पर नानक देव जी ने बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा, मैं यहां पूरे दिन के सफर से थककर लेटा हूं, मुझे नहीं मालूम की खुदा का घर किधर है तू हमारे पैर पकड़कर उधर कर दे जिस तरफ खुदा का घर नहीं है।

गुरु जी की यह बात सुनकर जिओन को गुस्सा आ गया और उसने उनके चरणों को घसीटकर दूसरी ओर कर दिया। इसके बाद जब उसने चरणों को छोड़कर देखा तो उसे काबा भी उसी तरफ ही नजर आने लगा। इस तरह उसने जब फिर से चरणों को दूसरी तरफ किया तो फिर काबा उसी और घूमते हुए नजर आया। जिओन ने यह बात हाजी और मुसलमानों को बताई।

इस चमत्कार को सुनकर वहां काफी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए। इसे देखकर सभी लोग दंग रह गए और गुरु नानक जी के चरणों पर गिर पड़े। उन सभी ने नानक देव जी से माफी मांगी। जब वह वहां से चलने की तैयारी करने लगे तो काबा के पीरों ने गुरु नानक देव जी से विनती करके उनकी एक खड़ाव निशानी के रूप में अपने पास रख ली।

जब इस घटना के बारे में काबा के मुख्य मौलवी इमाम रुकनदीन को जानकारी हुई तो वह गुरुदेव से मिलने आया और वह उनसे आध्यात्मिक प्रश्न पूछने लगा। वह नानक देव जी से कहने लगा कि मुझे जानकारी मिली है कि आप मुस्लिम नहीं हैं। पूछने लगा कि यहां आप किसलिए आए हैं। गुरुदेव ने कहा कि मैं आप सभी के दर्शनों के लिए यहां आया हूं।

इस पर रुकनदीन पूछने लगा कि हिन्दू अच्छा है कि मुसलमान, इस पर गुरु जी ने कहा कि जन्म और जाति से कोई बुरा नहीं होता। वही लोग अच्छे हैं जो ‘शुभ आचरण’ के स्वामी हैं। गुरुदेव जी ने कहा कि पैगम्बर उसे कहते हैं जो खुदा का पैगाम मनुष्य तक पहुंचाए। रसूल या नबी खुदा का पैगाम लाए थे।






कुरीतियों का विरोध

इसी तरह जब गुरु नानक जी विवाह के बाद समाज में फैली जात-पात, ऊंच-नीच की कुरीतियां दूर करने की ठानी तो वह जनता के बीच निकल पड़े। सबसे पहले गुरु नानक ने दक्षिण-पश्चिमी पंजाब का भ्रमण किया। यात्रा करते हुए वह सैदपुर गांव में पहुंचे तो वहां वह लालू नामक बढ़ई के घर में रुक गए।


आर्थिक रूप से गरीब लालू के घर रुकने की बात पूरे गांव में फैल गई। उसी गांव में ऊंची जाति का एक धनवान व्यक्ति भागो भी रहता था। उसने साधु-संतों के लिए एक भव्य भोज का आयोजन कर रखा था। उसने नानक को भोज के लिए बुलाया लेकिन उन्होंने वहां जाने से इनकार कर दिया।

भागो ने नानक देव जी से अपने घर पर भोज में नहीं आने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऊंच-नीच में भेदभाव नहीं करता। लालो मेहनत से कमाता है तुम गरीबों, असहायों को सताकर पैसा कमाते हो।

नानक जी ने एक हाथ से लालो की सूखी रोटी और दूसरे हाथ से भागो का पकवान निचोड़ा तो लालो की रोटी से दूध निकला, वहीं भागो की रोटी से खून निकला। यह देखकर सभी भौचक्के रह गए।इसके बाद वह यात्रा करते हुए असम पहुंचे, यहां एक ऊंची जाति का व्यक्ति खाना बना रहा था। नानक जी उसके चौके में चले गए।

यह देख वह व्यक्ति उन पर गुस्सा हो गया और चौके के भ्रष्ट होने की बात कही। यह सुनकर नानकदेव जी ने कहा कि आपका चौका तो पहले से भ्रष्ट है क्योंकि आपके अंदर जो नीची जातियां बसती हैं, आप उसे कैसे पवित्र करोगे। यह सुनकर वह बहुत शर्मिंदा हुआ।




मृत्यु

जीवन के अंतिम दिनों में इनकी ख्याति बहुत बढ़ गई और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। स्वयं विरक्त होकर ये अपने परिवारवर्ग के साथ रहने लगे और दान पुण्य, भंडारा आदि करने लगे। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई। इसी स्थान पर (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को इनका परलोकवास हुआ।


मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव के नाम से जाने गए।


गुरु नानक देव जी के 30 अनमोल सुविचार

1. भगवान पर वही विश्वास कर सकता है जिसे खुद पर विश्वास हो

2. यह दुनिया सपने में रचे हुए एक ड्रामे के समान है

3. भगवान उन्हें ही मिलते है जो प्रेम से भरे हुए है

4. सिर्फ वही शब्द बोलना चाहिए जो शब्द हमे सम्मान दिलाते हो

5. बंधुओ ! हम मौत को बुरा नही कहते यदि हम जानते की मरा कैसे जाता है

6. ना मै बच्चा हु, ना एक युवक हु, ना पौराणिक हु और ना ही किसी जाति से हु

7. यह दुनिया कठिनाईयों से भरा है जिसे खुद पर भरोसा होता है वही विजेता कहलाता है

8. ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है हम सबका पिता है इसलिए हमे सबके साथ मिलजुलकर प्रेमपूर्वक रहना चाहिए

9. कभी भी किसी भी परिस्थिति में किसी का हक नही छिनना चाहिए

10. आप सबकी सदभावना ही मेरी सच्ची सामजिक प्रतिष्ठा है

11. जो लोग अपने घर में शांति से जीवन व्यतीत करते है उनका यमदूत भी कुछ नही कर पाते है

12. सच्चा धार्मिक वही है जो सभी लोगो का एक समान रूप से सबका सम्मान करते है

13. प्रभु को पाने के लिए प्रभु के गीत गाओ, प्रभु के नाम से सेवा करो और प्रभु के सेवको के सेवक बन जाओ

14. कोई भी राजा कितना भी धन से भरा क्यू न हो लेकिन उनकी तुलना उस चीटी से भी नही की जा सकती है जिसमे ईश्वर का प्रेम भरा हुआ हो

15. उसकी चमक से ही सम्पूर्ण जगत प्रकाशवान है

16. मेरा जन्म ही नही हुआ है तो भला मेरा जन्म या मृत्यु कैसे हो सकता है

17. भी भी बुरा कार्य करने की सोचे भी नही और न ही कभी किसी को सताए

18. ईश्वर एक है उसके रूप अनेक है

19. ईमानदारी से मेहनत करके ही अपना पेट पालना चाहिए

20. सभी एक समान है और सब ईश्वर की सन्तान है

21. जब भी किसी को मदद की आवश्यकता पड़े, हमे कभी भी पीछे नही हटना चाहिए

22. संसार को जीतने के लिए अपने कमियों और विकारो पर विजय पाना भी जरुरी है

23. अहंकार कभी भी मनुष्य को मनुष्य बनकर नही रहने देता है इसलिए कभी भी अहंकार या घमंड नही करना चाहिए

24. कभी भी उसे तर्क से नही समझा जा सकता है चाहे तर्क करने में अपने कई सारे जीवन लगा दे

25. वहम और भ्रम का हमे त्याग कर देना चाहिए

26. हमेसा दुसरे के मदद के लिए आगे रहो

27. धन को जेब तक ही स्थान देना चाहिये अपने हृदय में नही

28. तेरी हजारो आँखे है फिर भी एक आँख नही, तेरे हजारो रूप है फिर भी एक रूप नही

29. चिंता से दूर रहकर अपने कर्म करते रहना चाहिए

30. अपने मेहनत की कमाई से जरुरतमन्द की भलाई भी करनी चाहिए









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